Wednesday, August 4, 2010

रहस्य - उद्घाटन

'पुरुष महिलाओं से
होते हैं अधिक बातूनी'
समाजशास्त्र के प्राध्यापक
की यह टिप्पणी
समाचार पत्रों में पढ़कर
महिलाओं के
पुलकित हो गए मन
और तुरन्त किया
एक सभा का आयोजन
जिसमें उन्होंने
प्राध्यापक के रहस्य-उद्घाटन का
रहस्य खोला
और पूरे सात घंटे तक
लगातार बोला।

Thursday, July 29, 2010

हिन्दी - हत्या

सरकारी कार्यालय में
नौकरी मांगने पहुँचा
तो अधिकारी ने पुछा -
'क्या किया है'
मैंने कहा - ' एम॰ ए॰'
वो बोला - ' किस में'
मैंने गर्व से कहा - ' हिन्दी में'
उसने नाक सिंकोड़ी
'अच्छाहिन्दी में एम॰ ए॰ हो
बड़े बेशर्म हो
अभी तक ज़िन्दा हो
तुमसे तो
वो स्कूल का लड़का ही अच्छा था
जो ज़रा-सी हिन्दी बोलने के कारण
इतना अपनामित हुआ
कि उसने आत्म-हत्या कर ली
अरे
इस देश के बारे में कुछ तो सोचो
नौकरी मांगने आये हो
जाओ भैया! कहीं कुआँ या खाई खोजो
मैंने कहा-
हिन्दुस्तान में रहते हिन्दी का विरोध
हिन्दी के प्रति इतना प्रतिशोध'
वो बोला-
'यह हिन्दुस्तान नहीं
यह इण्डिया है
और हिन्दी
सुहागिन भारत के माथे की उजड़ी हुई बिन्दिया है
तुम्हारे ये हिन्दी के ठेकेदार
हर वर्ष
हिन्दी-दिवस तो मानते हैं
पर रोज़ होती हिन्दी-हत्या को
जल्दी भूल जाते हैं।'

Monday, November 2, 2009

प्रदूषण

पिछले दिनों एक स्कूल ने
नेहरु जी का जन्म - दिन मनाया
और इस अवसर पर
पर्यावरण एवं प्रदूषण पर
विशाल मेला लगाया

छात्रों एवं अध्यापकों ने
मेले की सफलता के लिए
बड़ा जोर लगाया
इसलिए उसके उदघाटन हेतु
उसी विभाग के मंत्री जी को बुलवाया
हालांकि
नेताजी उसी विभाग में मंत्री थे
पर पर्यावरण एवं प्रदूषण का
हिन्दी में अर्थ
उन्हें आज तक समझ में नहीं आया

उदघाटन में बोले-
'नेहरु जी, हमारे महान नेता थे
हम कलयुग हैं, वो त्रेता थे
उन्हें पर्यावरण बहुत पसन्द था
बल्कि वो पर्यावरण के पर्याय थे

और प्रदूषण
प्रदूषण को तो वो
बहुत प्यार करते थे
उनकी देखा-देखी
उनके हजारों अनुयायी
प्रदूषण पर मरते थे
इसीलिए मैंने
आज से बीस साल पहले
यह निर्णय लिया था
क्योंकि मेरे दो बेटों का नाम
कुलभूषण और बृजभूषण था
इसलिए तीसरे का नाम
मैंने प्रदूषण रख दिया था।'

उदघाटन के बाद
नेताजी अपने मंत्रालय आए
तो उअन्के पी॰ ए॰
उनके पीछे तुतलाते हुए आए
'……, ……, ये चिट्ठी आई है
होम मिनिस्टरी ने भिजवाई है'
'किस मिस्त्री ने भिजवाई है?'
'मिस्त्री ने नहीं ……
मिनिस्टरी ने'
'तुम खड़े क्यों हो बैठ जाओ
और किसके बारे में है
पहले ये बताओ?'
'…… प्रदूषण के बारे में'
सुसते ही नेता जी मुस्कराने लगे
बोले-
'हैं…… हमारा प्रदूषण इतना बड़ा हो गया
कि उसके बारे में खत भी आने लगें
'…… लिखा है
यह बहुत फैल रहा है।'
'वो तो फैलेगा ही
आखिर बेटा किसका है।'
'स……र इसे रोकना है।'
नेताजी गुस्से से बोले -
'अब हमारा सर
किसी के आगे क्यूं झुकेगा
अगर रोकना ही था
तो बीस साल पहले कहते
अब ये किसी के रोकने से थोड़ी रुकेगा'
'स……र इसे रोकने के लिए
बीस करोड़ रुपया आ रहा है।'
'हैं……प्रदूषण को रोकने के लिए
बीस करोड़ रुपया आ रहा है
फिर तो वो रुका ही हुआ है
वो कहाँ जा रहा है?
सुनो!
हमारे मातहत सभी विभागों को
'डी॰ओ॰' भिजवाओ
लिखो,
हमने इस समस्या का
स्थायी प्रबन्ध कर दिया है
और बीस करोड़ रुपये के लिए
अपने बेटे प्रदूषण को
कमरे में बंद कर दिया है।'

Thursday, October 15, 2009

अखबार की उपयोगिता



मेरे एक मित्र ने
एक सज्जन से परिचय कराया -
'इससे मिलिए
ये एक अखबार में संपादक है
कुछ भी छापना इसका हक है
ये अखबार में छापता है -
कश्मीर की आग
बिहार का दाग
बढ़ते हुए अत्याचार
फैलता हुए व्यभिचार
बढ़ते हुए अत्याचार
फैलता हुआ व्यभिचार
बढ़ते हुए बलात्कार
और कैसे डाला जाता है
स्वादिष्ट आम का अचार
ये उत्तेजक खबरें लाने के लिए
नेताओं और अभिनेताओं के
बैडरुम मे भी घुस जाता है
और इसका अखबार
बैड टी के साथ
सिर्फ प्रैशर बनाने के काम आता है।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन पर वरिष्ठ भाजपा नेता आडवाणी के साथ जैमिनी जी

Sunday, October 4, 2009

दो और दो पाँच

हमारे शहर के
एक नेता जी
अचानक बीमार हो गए
बीमारी में
विरोधियों का हाथ था
सन्निपात था
आत्मा
शरीर में डोलने लगी थी
बड़बड़ा कर बोलने लगी थी

मैंने सोचा -
क्या विरोधाभास है
पहली बात तो
नेता के आत्मा होती है
और अगर गलती से हो
तो बोलती नहीं
फिर सोचा -
हालत सीरियस है
मिल लेना चाहिए
तीन दिन तक
दाढ़ी बढ़ाने के बाद
जब मैं किसी की
तेरहवीं में जाने लायक हो गया
तो मनहूस-सी सूरत बना
उनके घर पहुँच गया
'हुज़ूर!
यह सब अचानक कैसे हो गया?'
वो बोले - भैया
बुढ़ापा है, हो जाता है।'
मैंने कहा -
'ये बीमारी है या भूत है'
वो बोले - 'नहीं
यह सब विरोधी दल की करतूत है
क्योंकि
उनके सत्ता में आने के बाद ही
हमें पता चला
कि कुछ आत्मा भी होती है
जो कभी तथाकथित रुप से बोलती है
तो कभी तथाकथित रुप से रोती है
जब आत्मा रोये तो समझ लो
कुछ क्रूर हाथों द्वारा
किसी निर्दोश बस्ती का दम निकल गया
औअर आत्मा बोले तो समझ लो
नेता जी का दल, बदल गया
फिलहाल तो
हमारी आत्मा बोल रही है'

मैने कहा - 'ठीक बात है
जब इस देश में
दो और दो पाँच हो सकते हैं
तो आपकी आत्मा भी बोल सकती है।'
वो चौंके -
'आप भी क्या अंट-शंट बकते हैं
दो और दो पाँच हो सकते हैं
गणित मैंने भी पढ़ा है
आठवीं पास हूं।'
मैंने कहा - 'क्यों
जब 'रघुपति राघव राजा राम' पर
डिस्को हो सकता है
तुम्हारे जैसा पद-लोलुप नेता
देश की दुर्दशा पर रो सकता है
राजनीति में
सांप और नेवला मिल सकते हैं
समय पर
बुद्धिजीवी के होंठ सिल सकते हैं
राजनीति इस देश की
अर्थव्यवस्था को मरोड़ सकती है
शराफत का साथ छोड़ सकती है
अपराधी नेताओं के पहलू में सो सकते हैं
और लाशों पर पैर रख कर
चुनाव हो सकते हैं
तो दो और दो पाँच भी हो सकते हैं।'
वो बोले - 'भैया
मुझे बेवकूफ मत बनाओ
ये सब तो सम्भावनाएं हैं
कैसे होते हैं, ये बाताओ?'
मैंने कहा -
'मुझसे क्या पूछते हो
किसी बड़े उद्योगपति से पूछो
दो और दो पाँच कैसे होते हैं
किसी इन्कम-टैक्स बचाने वाले से पूछो
लोहे के बांध
और पुल चबाने वालों से पूछो
और एक ही फाइल में
लाखों पेड़ उगाने वालों से पूछो
दो और दो पाँच कैसे होते हैं…
अभी मैं
उदाहरण दे ही रहा था
कि नेताजी का एक चमचा
अंदर आया
नेता जी के कान में फुसफुसाया
'हुजूर
अपनी आत्मा से कहिये
अब चुप हो जाये
उन्होंने आपको मंत्रिमण्डल में
लेने का निश्चय कर लिया है।'
सुनते ही
नेताजी की आंखों में
एक चमक आई
फिर बोले - 'जैमिनी भाई!
देखा आपने
एक आत्मा के बोलने से
अनेक लाभ कैसे होते हैं
तुम्हें उदाहरण देने नहीं आये
दो और दो पाँच ऐसे होते हैं।'