एक रात जब मैं
कवि- सम्मेलन से घर आया
तो दरवाज़ों को
अपने स्वागत में खुला पाया,
अंदर कवि की कल्पना
या बेरोज़गार के सपनों की तरह
सारा सामान बिखरा पडा था
और मैं
हूट हुए कवि की तरह खड़ा था
क्या-क्या गिनाऊं सामान
बहुत कुछ चला गया श्रीमान
बस एक ट्रांजिस्टर में
बची थी थोड़ी-सी ज्योति
जो घरघरा रहा था—
‘मेरे देश की धरती सोना उगले
उगले हीरे-मोती’
सुबह होते ही लोग आने लगे
चाय पीकर और उपदेश पिलाकर जाने लगे
मेरे ग़म में अपना ग़म
ग़लत करने के लिए
ठूंस-ठूंस कर खाने लगे
चोरी हुई सो हुई
चीनी-पत्ती-दूध पर पड़ने लगा डाका
दो ही घंटे में खाली डिब्बों ने मेरा मुंह ताका
मेरी परेशानी देखकर
मेरे पड़ोसी शर्मा ने ऐसा पड़ोसी धर्म निभाया
मुझसे पैसे लिए
और पत्ती-चीनी के साथ समोसे भी ले आया
इस तरह चाय पिलाते-पिलाते
और चोरी का किस्सा बताते-बताते
सुबह से शाम हो गई
गला बैठ गया और आवाज़ खो गई
पचहत्तरवें आदमी को
जब मैंने बताया
तो गले में दो ही शब्द बचे थे— ‘हो – गई’
अगले दिन मैंने
दरवाज़े जितना बड़ा बोर्ड बनवाया
और उसे दरवाज़े पर ही लटकाया
जिस पर लिखवाया--
भाइयो और बहनो,
कल रात जब मैं घर आया
तो मैंने पाया
कि मेरे यहां चोरी हो गई
चोर काफी सामान ले गए
मुझे दुःख और आपको खुशी दे गए
क्योंकि जब मैं जान गया हूं
कि वही आदमी सुखी है
जिसका पड़ोसी दुःखी है
कृपया अपनी खुशी
मेरे साथ शेयर न करें
अंदर आकर
चाय मांगकर शर्मिंदा न करें
आपका अदर्शनाभिलाषी’
लेकिन उसे पढ़कर एक नर-पुंगव अंदर आया
मैंने अपना गला सहलाते हुए उसे बोर्ड दिखाया
वो बोला— ‘भाई साहब,
बोर्ड मत दिखाओ
हुई कैसे, ये बताओ’
मेरे पत्रकार मित्र ने तो पूरी कर दी बरबादी
अगले दिन ये खबर अख़बार में ही छपवा दी
अब क्या था
मेरी जेब में मच गया हाहाकार
दूर-दूर से आने लगे
जाने-अनजाने, यार-दोस्त, रिश्तेदार
एक दूर के रिश्ते ही मौसी बोली-
’बेटा आज तो मेरा व्रत है
आज तो बस मैं फल और मेवे ही खाऊंगी
और जब तक चोर पकड़ा नहीं जाएगा
तुझे अकेले छोड़कर नहीं जाऊंगी।‘
दस दिन बाद मैंने हिसाब लगाया
चोरी तो तीन हज़ार की हुई थी
पर उसका हाल बताने में
पाँच हज़ार का खर्चा आया
मैंने सोचा बचे-खुचे पैसे भी
ठिकाने लग गए तो कहां जाऊंगा
अगर दस दिन और इसी तरह चलता रहा
तो मैं तो मारा जाऊंगा
अगले दो दिन और मैं इसी तरह से जिया
पर तीसरे ही दिन
मैंने एक खतरनाक और ऐतिहासिक फैसला लिया
अपने भीतर
फौलादी इच्छा-शक्ति भर ली
और उसी रात पड़ोसी शर्मा के यहां
छोटी-माटी चोरी कर ली
अगले दिन मैंने
सुबह का नाश्ता शर्मा जी के यहां जमाया
पत्रकार मित्र से कहकर अख़बार में छपवाया
और अपने रिश्ते की मौसी को
उसके रिश्ते की बूआ बनवाया
अब जब भी
उसके घर की घंटी बजती
मेरे भीतर के जानवर को
बहुत खुशी मिलती
मैं मन ही मन कहता--
’अबे शर्मा राम भरोसे
ले और खा समोसे’
अब शर्मा जी की तबीयत बुझ गई
मेरी खिल गई
जिसकी पिछले तेरह दिन से इंतज़ार थी
वो शांति मुझे मिल गई
मेरी जेब में पडा
आखिरी दस का नोट
अब किसी से नहीं डरेगा
अब मुझे पता है
कि मेरे यहां चोरी क्यों हुई
और मोहल्ले में
अगली चोरी कौन करेगा।।
ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha
ReplyDeleteha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha
ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha VAH VAH VAH VAH
ACHHI RACHNA K LIYE BADHAI-------ARUN BHAI
ha...ha...ha...
ReplyDeleteho....ho....ho..
hee...hee,....heee..
maja aa gaya bhaayi
lekhte rahiye
जैमिनी जी,
ReplyDeleteआपको ब्लॉगजगत में देखकर कितनी ख़ुशी हुई, बता नहीं सकता | अभी तक आपको सिर्फ मंचो और यू-ट्यूब के जरिये ही सुना है || आज आपसे नेट के जरिये सीधे जुड़ने का मौका मिला , और वो भी सबसे पहले || कभी आपके साथ कविता पाठ करने का मौका तो नहीं मिला क्यूंकि अभी में उस ऊँचाई तक नहीं पहुंचा हूँ जिस पर आप विराजमान हैं , फिर भी आज इस नेट ने आपसे जुड़ने का मौका दिया , ये भी गर्व कि बात है ||
हाहाहाहाहाहाहाहाहहह बहुत सुंदर
ReplyDeleteSundar...atisundar...
ReplyDeleteha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha
ReplyDeleteha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha
ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha VAH VAH VAH VAH
लिखते रहिये
चिटठा जगत मैं आप का स्वागत है
गार्गी
आप और आपकी कविताएं ज़ितनी सुन्दर हैं ब्लाग भी उतना ही सुन्दर है।
ReplyDeleteप्रवीण शुक्ल
मजेदार... कविता का अंत बड़ा जोरदार है।
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