त्रेता युग में जब कैकेयी के कहने पर राम जी को चौदह वर्ष का बनवास मिला तब भी आम लोगों में यही संवाद चलाहोगा-
… 'समय बहुत ही बुरा आ गया'।
रथ दशरथ जी का फंसा और गति हमारी रोक दी।
वर कैकेयी का मिला, अभिशप्त हम हो गये'
उस समय के विरोधियों ने तो यहाँ तक कहा होगा-
'अजी ये भारत भी बहुत चतुर है। राज करने के नाम पर राम जी के खड़ाऊँ तक मांग लाया, अब घूमो राम जी चौदह वर्ष तक नंगे पाँव, जंगलों में।
द्वापर युग में तो ये संवाद अनेक बार बोला सुना गया होगा। शांतनु के कारण भीष्म प्रतिज्ञा पर कंस के अत्याचार केकारण, शकुनी के छल पर धृतराष्ट्र के पुत्र-मोह के कारण, कर्ण पर हुए अन्याय पर दुर्योधन-दु:शासन के भीतर फैलरही घृणा और न जाने कितने कारणों से यही संवाद बात प्रारम्भ करने के लिए निकला होगा। इस संवाद की अतितो द्रोपदी के चीर-हरण पर हुई होगी-
'हे ईश्वर इतना बुरा समय भी हमें ही दिखाना था।'
'भला पत्नी को भी दाँव पर लगाया जाता है।
'राज भवन में जुआ खेला जा रहा है…
'भीष्म, द्रोणाचार्य, विदुर देखते रहे और भरी सभा में द्रोपदी का चीर - हरण किया गया हे ईश्वर इतना बुरा समयकिसी को न दिखाये।
ये तो तब था जब ईश्वर स्वयं पृथ्वी पर मानव-रुप में थे। अब क्या हालात हो गये आप अपने -आप से ही पूछ सकतेहैं?
जैसा कि सबके पिता कहते हैं, कल मेरे पिता ने भी मुझसे हजारवीं बार कहा-'बेटा जमाना बहुत खराब आ गया हैअब तो बस सामने वाले की हाँ में हाँ मिलाये जाओ तब ही जी सकते हो।' मैने सोचा एक दिन तो उनकी बात भीमान कर देखो। उसी दिन मुझे एक नेताजी के घर किसी काम से जाना था। वहाँ पहुँच कर मैंने नेता जी की प्रशस्तीमें दो-चार संवाद कहे ही थे कि नेता जी विनम्रता की प्रतिभूति हो गये-
अजी! मैं क्या हूँ…आप लोगों का सेवक, आप जनता जनार्दन के चरणों की धूल हूँ …। मैने पिता की बात याद करतेहुए कह दिया - हाँ, वो तो हो।'
बस इतना सुनते ही नेता जी बिफर गये और उनके पास उस समय जितने किस्म के चमचे गुंडे और कुत्ते थे सबमुझपे छोड़ दिये।
क्यों आ गया न बहुत खराब जमाना। अब तो हाँ में हाँ मिलाने का भी जमाना नहीं है। बहुत खराब टैम आ गया है।