Thursday, August 27, 2009

एक हंसता - हंसाता इंसान

हंसना और हंसाना बड़ी बात है तो लाखों - लाखों लोगों को देश - दुनिया में हंसाना और भी बड़ी बात। बहरहाल ऐसे शख्स से जो इस कला में महारत हासिल कियें हो, ओशो टाइम्स के लिये बात करना लाजमी था। एक शहद में डूबी पूरी सुबह चाय पीते, नाश्ता करते, रिजार्ट में चहल कदमी करते मानसून फेस्टिवल के दौरान आयोजित कवि सम्मेलन में आये सुप्रसिद्ध हास्य कवि श्री अरुण जैमिनी के साथ मिश्री-सा अनुभव दे गई। नियमित अंतराल से लगते हंसी के ठहाकों के बीच, जीवन के विभिन्ना आयामों से लेकर दुनिया की छोटी और बड़ी समस्याओं पर जैमिनी जी ने अपने विचार व्यक्त किये। श्री जैमिनी से हुई बातों का आप भी आनंद लीजिये-

'मेरे पिताजी श्री जैमिनी हरियाणवी हास्य रस के कवि हैं, इस कारण बचपन से ही घर में कविता का माहौल था। विभिन्न कवियों का घर पर आना जाना लगा रहता था, इस कारण यूं कहो कि बचपन से कविता के कीटाणु जैहन में चले गये। छोटा-सा था तब ही से कविताएं लिखने लगा। मेरी पहली कविता जब मैं नवीं कक्षा में था तब प्रकाशित हुई। अच्छा लगा, अपने लिखे अक्षर छपे देखकर स्वभाविक ही मन प्रसन्न हो गया। इस तरह से काव्य से प्रेम बचपन में हो गया। महाविद्यालयीन शिक्षा तक कविताएं लिखता रहा, प्रकाशित होती रही। शिक्षा पूरी करने के बाद नौकरी की तलाश की। वो तो कहिये किस्मत अच्छी थी कि नहीं मिली। रोजगार का कोई और चारा न देखकर कविता पाठ करने के लिये मंच पर आने लगा और फिर मजा आने लगा। रोजी-रोटी चल निकली।

सच कहूं हजारों लोगों को हंसते देखकर मन इतना प्रसन्न होता है कि बता नहीं सकता। कुछ देर के लिये ही सही, लोग अपने दुखों, चिंताओं व परेशानियों को भूलकर हंस लेते हैं, खुश हो जाते हैं तो बहुत चैन मिलता है। असल में आज की इस आपाधापी के जीवन में लोग हंसना भूल गये हैं। आज हास्य की अधिकतम जरुरत है। मेरा मानना है कि समाज में जिस रस की कमी होती है वही र्स साहित्य में प्रचुरता में आ जाता है। अलग-अलग समय और दौर में साहित्य में विभिन्न रस प्रमुखता से आये। जब देश बंटा था, लंबी गुलामी से निकल रहा था तब वीर र्स प्रमुख था। रीति काल में पर्दा प्रथा थी, सौंदर्य देखने को नहीं मिलता तो उस समय सौंदर्य पर खूब कवितायें लिखी गई। आज समाज में हास्य की कमी है। हास्य से व्यक्ति स्वयं से जुड़ता है, दूसरों से जुड़ता है। आज का युग हास्य की महत्ता को पहचान रहा है। और सच कहूँ ओशो ने हास्य को इतना सम्मान दिया है, इतना महत्व दिया है कि शायद ही कभी किसी ने दिया हो।

मैं कई सालों से ओशों को पढ़ता हूं, सुनता हूं। ओशो से मुझे काव्य सृजन की प्रेरणा मिलती है। करीब दस साल से यहां नियमित आना हुआ है। यहां कविता पाठ का अपना ही आनंद है। ओशो के लोगों को हंसना आता है। जितना खुलकर लोग यहां ठहाके लगाते हैं उतना दूसरी जगह देखने को नहीं मिलता। ओशों स्वयं भी अपने प्रवचनों में भरपूर हंसाते हैं तो निश्चित ही यहां तो जैसे लोगों को हंसने की आदत - सी है। ऐसे में हमारी कविताओं पर जो सामूहिक ठहाके लगते हैं वे अनूठे होते हैं। असल में बात के कहते ही यदि बात श्रोताओं तक पहुंच जाये तो उसका अपना ही मजा है। और यहां तो यूं लगता है कि बात को कहने के पहले बात पहुंच जाती है।

जब पहली बार यहां आया था तो बहुत प्रसन्नता हुई थी। लगा कि देर ही से सही, आया तो। भारत की और विश्व की सभी विधाओं की प्रतिभाओं को ओशो ने प्रभावित किया है। आज दुनियाभर के सृजनकार ओशो से प्रेरणा ले रहे हैं, कवि भी इससे अछूते नहीं है। आज कवियों के बीच ओशो पर चर्चा आम बात हो गई है। भारत के कई कवि विभिन्न मंचों से ओशो की बात करते रहे हैं। और फिर हास्य कवि तो निश्चित ही ओशो के शुक्रगुजार है। ओशो ने समाज में हंसी को बहुत ऊंचा स्थान दिलाया है। हास्य के महिमा मंडित होने से हास्य कवि भी महीमा मंडित हुए हैं। एक समय तक हास्य कवियों को उतना सम्मान नहीं मिलता था जितना दूसरे कवियों को। आज हालात बदल गये हैं। और इसके लिये ओशो ने बहुत बड़ा काम किया है।

ओशो से पहले शायद ही किसी संत ने हास्य को इतना महत्व दिया है। ओशो स्वयं आश्चर्यचकित होते हैं कि क्यों कभी इस पर प्रयोग नहीं हुआ। हंसता हुआ आदमी शारीरिक, मानसिक रुप से स्वस्थ होता है। उसका मन निर्मल होता है, वह अपराधी नहीं हो सकता, वह विध्वंसक नहीं हो सकता।
आज भारतभर में तथाकथित साधु-संत ओशो के विचारों की चोरी कर रहे हैं लेकिन सभी को साफ पता चलता है कि बातें ओशो की हैं और फिर इनके दंभ से लोग हंस नहीं सकते लेकिन ओशो ने हास्य को इतना अनिवार्य हिस्सा बना दिया कि ये प्रयास करते हैं फिर भी नकल तो साफ दिखती है। असल में दंभ से भरे ये कथित साधु-संत जब हंसते हैं तो इनकी हंसी बड़ी विद्रुप होती है।

ये नकलची जब ओशो के शब्दों को ऊपर-ऊपर से पकड़कर बोलते हैं और अर्थ का अनर्थ करते हैं तब साफ दिखता है कि बात अनुभव से नहीं आ रही है, मात्र खोपड़ी से आ रही है। बात को अनुभव के बगैर कहने पर कैसे बिगड़ती है इसका उदाहरण देखिये। शास्त्र में एक उक्ति आती है-'गुरु विशिष्ट बहु विधि बतायी ,' किसी नकलची ने इसकी व्याख्या करी 'गुरु विशिष्ट ने बहु लाने की विधि बताई, ' नकल तो आखिर नकल है।

ऐसे ही जीवन के हर क्षेत्र में चोरी होती है। कविताओं की चोरियां होती हैं। भाई लोग दूसरे कवियों की कविता उड़ाकर बोल जाते है। फिर भी ओरीजनल तो ओरीजनल ही रहेगा। चोर ज्यादा दिन जिंदा नहीं रह सकते।

लेकिन किसी बहाने आज हंसी हमारे समाज का अनिवार्य हिस्सा बनती जा रही है और ओशो के हम सभी शुक्रगुजार हैं कि उन्होंने हास्य को इतना सम्मान दिया। ओशो ने उत्सव की बात की, हंसी की बात की, मौन की बात की। मेरी अपनी कविताओं में इस सब के लिये ओशो प्रेरणादायी रहे हैं।

अच्छा हास्य रचना, लिखना, आसान नहीं है। स्वस्थ हास्य और ऐसी कविताएं लिखने के लिये बहुत प्रतिभा चाहिये। चुटकुलों की तुकबंदी हास्य कविता नहीं है। पर क्या है कि समाज में महत्वाकांक्षा का ऐसा दौर चला है कि लोग अपने लाभ और उद्देश्यों की पूर्ति के लिये किसी भी कीमत पर समझौते कर रहे हैं बगैर इसकी परवाह किये कि इसका समाज पर क्या असर होने वाला है। उदाहरण के लिये हमारे टी॰वी॰ पर चल रहे समाचार चैनलों को ही देख लीजिये। लगता ही नहीं कि इनका कोई सोच, समाज के प्रति जिम्मेदारी या मानवता के प्रति कोई उत्तरदायित्व भी है। आज जितना जहर हमारे परिवारों में, समाज में, देश में ये कथित समाचार चैनल दे रहे हैं शायद ही कोई और। ओशो ने समाचार माध्यमों की जागरुकता पर कई बार बोला है। आज कितने ही दंगे लापरवाह समाचार माध्यम करवा देता है। जिस प्रकार से सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है, लोगों को इसको लेकर सचेत किया जाता है उसी तरह से इन तरह-तरह के चैनलों से भी लोगों को सावधान किया जाना चाहिये।

एक मजेदार वाकिया मुझे याद आ रहा है-मुंबई के एक बहुत बड़े उद्योगपति का देहावासान हो गया था उनके बंगले से समाचार चैनल सीधा प्रसारण कर रहे थे। स्टूडियो में बैठा समाचार वाचक बंगले पर उपस्थित संवाददाता से पूछ्ता है, 'वहां का माहौल कैसा है?' बंगले से संवाददाता कहता है-'यहां बहुत चहल-पहल है, बड़े-बड़े लोगों का आना-जाना लगा है।' ये हमारा मीडिया - इतना बचकाना, लापरवाह । एक उदाहरण दूं, जब कारगिल युद्ध चल रहा था एक टी॰वी॰ चैनल की संवाददाता सीधे प्रसारण पर बोलती है- 'मेरे पीछे जो आप खाली जमीन देख रहे है, यहां पर कुछ देर पहले एक मंदिर था जो पाकिस्तानी बमबारी से नष्ट हो गया।' ऐसे नाजुक समय में देश में इस तरह की खबरें प्रसारित करना कितना खतरनाक हो सकता है, इसके प्रति जरा भी होश इन चैनलों को नहीं है। यह देखकर सचमुच दुख होता है।'

अब क्या आप सोचते हैं कि जमिनी जी ने इतनी बड़ी समस्या पर इतने विचारोत्तेजक विचार देने के बाद क्या किया होगा? जी हां, अपने हरियाणवी शैली में बात को खतम कर हंस दिये और बोले, देखते हैं जी, ये भी कितने दिन चलेगा… ये अपना काम करें, हम अपना काम कर रहे हैं, इनका काम है रुलाना हमारा काम है हंसाना…

और हमने हंसते हुए एक-दूसरे से विदाई ली।

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