Sunday, August 30, 2009

जंगल का जनतंत्र

एक लीडर टाइप विचित्र जानवर ने
मुझे अपने जंगल में बुलाया
और वहाँ के जानवरों का
मुझसे परिचय कराया

ये भेड़ देख रहे हो
जिसकी आंखो पर पट्टी है
तुम्हें दुबली-पतली लगती होगी
वास्तव में
बहुत हट्टी-कट्टी है
इनकी ही वजह से
हम जानवर नेताओं में
युद्ध ठनता है
ये
मेरे देश की जनता है

और ये कछुआ
जो बहुत धीरे-धीरे चल रहा है
पीछे लौटने को
बार-बार मचल रहा है
कौन कहता है-इसकी धीमी गति है

ये
मेरे राष्ट्र की प्रगति है
उस टहनी पर तोते देख रहे हो
जो लगातार कुछ रट रहे हैं
बिल्कुल बेकार हैं
इस जंगल के साहित्यकार हैं

उधर वो काला कौआ
तुम्हें देखते ही शोर मचायेगा
पैसा फेंकोगे
तो शान्त हो जायेगा
उसके हाथ नहीं
बढ़े हैं नाखून
ये है
इस जंगल का काला कानून

उस तरफ देखो-
एक चीता गाय को खा रहा है
और बेचारा भेड़िया
लार टपका रहा है
चीते को कुछ नहीं कह रहा
हिंसा को
कितने अहिंसक रुप से सह रहा है
ये चीता और भेड़िया
दोनों इस जनतंत्र के
जीते-जागते उदाहरण हैं
भेड़ों में समाजवाद
इन्हीं के कारण है

तभी कुछ कुत्तों का शोर
हमारे कानों में पड़ा
देखा-
कुत्तों के समूह
मांस टुकड़े पर झगड़ रहे थे
मैंने उत्सुकतावश पूछा
तो वो बोला -
ये मेरे ही रिश्तेदार हैं
इन्हीं के भरोसे
चलती सरकार है
और ये झगड़ा नहीं
प्रति पांच वर्ष बाद
होने वाला उत्सव है
और इसी पर
जंगल की स्वतंत्रता को गौरव है।

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